महाभारत ग्रन्थ आधारित नीति संबंधी कथा
एक समय की बात है किसी घनघोर वन में एक क्रूर बहेलिया चारों ओर घूमता रहता था | वह प्रतिदिन जाल लेकर वन में जाता और बहुत से पक्षियों को पकड़ कर उन्हें बाजार में बेच दिया करता था |
एक दिन की बात है वह अपने शिकार की खोज में वन में घूम रहा था कि अचानक चारों ओर से बड़े जोर की आंधी उठी और घनघोर वर्षा होने लगी | वर्षा के वेग से बहुत से पक्षी मरकर भूमि पर गिर गए थे | जानवर भी इधर-उधर भाग रहे थे | बहेलिया भी सर्दी से ठिठुर रहा था और थककर धरती पर गिर पड़ा | इसी अवस्था में उसने भूमि पर गिरी हुई एक कबूतरी को देखा, जो ठंड से व्याकुल हो ठिठुर रही थी | वह पापी स्वयं भी कबूतरी की तरह ही अति कष्ट में था, लेकिन उसे उस कबूतरी पर दया ना आई और उसको उठाकर अपने पिंजरे में डाल लिया |
कुछ समय बाद वर्षा समाप्त हुई व आकाश तारों से चमकने लगा | ठंड से व्याकुल बहेलिया ने चारों तरफ देखा और गहरे अंधकार से भरी रात्रि को देखकर मन ही मन सोचने लगा कि मेरा घर तो यहां से बहुत दूर है फिर उसने समीप के ही एक विशाल वृक्ष के नीचे इस रात्रि को बिताने का निश्चय किया और वहीं एक शिला पर सर रखकर सो गया |
इस विशाल वृक्ष पर लंबे समय से एक कबूतर अपनी कबूतरी के साथ रहता था | लेकिन आज उस वृक्ष पर रहने वाला कबूतर अत्यंत व्याकुल था क्योंकि उसकी प्राणप्रिया दिन में ही जो दाना चुगने के लिए गई थी अभी तक लौटकर नहीं आई | वह कबूतर दुखी होकर इस प्रकार विलाप करने लगा – “अहो ! आज बड़ी भारी आंधी व वर्षा हुई है और मेरी कबूतरी अब तक लौटकर नहीं आई है | वह सकुशल तो होगी ना ? उसके बिना आज मेरा यह घर – यह घोंसला सूना-सूना सा लग रहा है | पुत्र, पुत्रवधू और अन्य भरण पोषण के योग्य कुटुंबी जनों से भरा होने पर भी गृहस्त का घर उसकी पत्नी के बिना सुना ही रहता है | वास्तव में ईंट-पत्थर से बने घर को घर नहीं कहते, जब तक घरवाली ना हो | गृह-पत्नी से शून्य घर को तो जंगल के समान ही माना गया है |”
“उत्तम व्रत का पालन करने वाली वह मुझे भोजन कराए बिना भोजन नहीं करती | स्नान कराए बिना स्नान नहीं करती | मुझे बैठाए बिना बैठती नहीं और मेरे सो जाने पर ही सोती है |”
“मेरे प्रसन्न होने पर वह हर्ष से भर जाती है और मेरे दुखी होने पर स्वयं भी अत्यंत दुखी हो जाती है | मेरे बाहर के लिए तैयार होने पर उसके मुख पर दीनता छा जाती है और मुझे क्रोध आने पर वह मधुर वचनों द्वारा शांत करती है |”
“वह सदा ही पति के प्रिय व हित में तत्पर रहती है | जिसको ऐसी पत्नी मिल जाए वह पुरुष इस संसार में धन्य है | वृक्ष के नीचे भी जिसकी पत्नी साथ है उसके लिए वही घर है और बड़ी अट्टालिका भी यदि स्त्री से शून्य है तो वह जंगल के समान है | पुरुष के धर्म, अर्थ व काम के अवसरों पर उसकी पत्नी ही उसकी मुख्य सहायिका होती है | पुरुष की प्रधान संपत्ति उसकी पत्नी ही बताई जाती है | इस संसार में जो असहाय है उसे भी संसार-यात्रा में सहायता देने वाली उसकी पत्नी ही है | जो मनुष्य रोग से पीड़ित हो और बहुत समय से संकट में फंसा हो उस पीड़ित मनुष्य के लिए भी पत्नी औषधि के समान है |”
“संसार में पत्नी के समान कोई बंधु नहीं, पत्नी के समान कोई आश्रय नहीं और पत्नी के समान धर्म कार्य में दूसरा कोई सहायक नहीं | जिसके घर में सती- साध्वी व मधुर वचन बोलने वाली भार्या नहीं उसे वन में चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए जैसा घर है वैसा ही वन है |”
इस प्रकार विलाप करते हुए कबूतर के करुणाजनक वचनों को सुनकर बहेलिये के चंगुल में फांसी कबूतरी ने सोचा कि मेरा महान सौभाग्य है कि मेरे प्रिय पतिदेव इस प्रकार मेरे गुणों का बखान कर रहे हैं | उस स्त्री को स्त्री नहीं समझना चाहिए जिसका पति उससे संतुष्ट नहीं रहता | ऐसा सोचकर कबूतरी ने अपने पति से यह वचन कहे – “प्राणनाथ इस बहेलिये का जीवन अभी संकट में है और यह आपके घर पर शरणागत के रूप में पड़ा हुआ है | शरणागत के रूप में इसकी प्राण रक्षा आपका कर्तव्य है | लेकिन साथ ही यह हमारी जाति का प्रबल शत्रु भी है | आप नीति व धर्म को जानने वाले हैं अतः आप इसके साथ उचित व न्यायपूर्ण व्यवहार करें |”
कबूतरी की आवाज सुन कबूतर प्रसन्न हो गया | उसे यह भी जानकर प्रसन्नता हुई कि उसकी प्राणप्रिया जीवित है और उसके समीप ही है | लेकिन व्याध पर दयापूर्ण व्यवहार करने वाले प्रश्न पर वह गंभीर हो गया और कहने लगा कि भले शरणागत रक्षा करना धर्म की श्रेणी में आता है लेकिन सर्वप्रथम यह देखना चाहिए की शरण में आया व्यक्ति किस प्रवृत्ति का है | उसका जीवन समाज के कल्याण में लगने वाला है या नया जीवन प्राप्त करने के बाद वह दूसरों के दुख का कारण बनेगा ?
इस बहेलिये ने भी जीवन भर प्राणियों का शिकार किया | बिना दया किये निर्दोष प्राणियों की हत्या की | निश्चय ही इसके इन पापों की सजा इसे परमेश्वर देंगे लेकिन इसकी प्राण रक्षा कर हमें स्वयं पाप का भागी नहीं बनना चाहिए और इसे तो मैं अपना शरणागत या अतिथि भी नहीं मानता | अभी हमारी शक्ति इसे दंड देने की नहीं है अतः इसे परमात्मा के दंड विधान के भरोसे छोड़ कर हमें यहां से प्रस्थान करना चाहिए |
बहेलिया सोने का नाटक कर दोनों की बातें सुन रहा था | जब कबूतर ने पिंजरे से कबूतरी को मुक्त करने का प्रयास किया तब भी उसने प्रतिरोध नहीं किया | कबूतर व कबूतरी दोनों एक दिशा में उड़ गए उन दोनों के जाने पर बहेलिया उठ बैठा व अत्यंत दुखी हो गया | उसे इस बात का दुख हुआ कि जिन प्राणियों की वह जीवन भर हत्या करता आया था आज उन्ही प्राणियों ने उसपर दया कर उसे छोड़ दिया | वे चाहते तो बेसूध पड़े व्याध को हानि पहुंचा सकते थे | यह सब सोचते-विचारते वह बहेलिया पुनः वहीं सो गया | लेकिन अगले दिन वह रात की बात भूलते हुए पुनः अपने शिकार की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा |