वैदिक विज्ञान का उपयोग कर यज्ञीय वर्षा , पर्जन्य यज्ञ का विज्ञान , यज्ञ की व्यवस्था व सामग्री
पृष्टभूमि
आज पीने योग्य जल के लिए तृतीय विश्व युद्ध तक की संभावना व्यक्त की जा रही है और वर्षा जल पीने योग्य या मीठे जल का सर्वाधिक उपयुक्त स्रोत है | जल संसार का पालन-पोषण करता है | जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती |
जल का सर्वाधिक उपयुक्त स्रोत वर्षा है और वर्षा मुख्यतः दो विधियों से हो सकती है | पहली, प्राकृतिक वर्षा तथा दूसरी, प्राकृतिक वर्षा के अभाव में मानव प्रयास से हुई वर्षा | मानव के प्रयास से हुई वर्षा को पुनः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं – एक आधुनिक विज्ञान का उपयोग कर कृत्रिम वर्षा तथा दूसरा वैदिक विज्ञान का उपयोग कर यज्ञ के माध्यम से यज्ञीय वर्षा |
आधुनिक विज्ञान का उपयोग कर कृत्रिम वर्षा
आधुनिक विज्ञान का उपयोग कर सामान्यतः दो विधियों का प्रयोग किया जाता है | एक में क्लाउड सीडिंग पद्धति का उपयोग किया जाता है | इसमें विमान द्वारा बादलों के भीतर रसायनों का छिड़काव किया जाता है | दूसरी पद्धति के अंतर्गत ऊंचाई वाले स्थानों से विद्युत तरंगों व प्रघाती तरंगों (Shock waves) का प्रयोग होता है |
लेकिन ऐसे तरीके वायु, जल व मिट्टी को प्रदूषित करने वाले तथा पर्यावरण व प्रकृति को दीर्घकाल तक नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले हो सकते हैं | इसके अलावा ऐसे प्रयासों-प्रयोगों की सफलता भी हमेशा संदिग्ध रहती है |
वैदिक विज्ञान का उपयोग कर यज्ञीय वर्षा
यज्ञ के माध्यम से यज्ञीय वर्षा के सफल प्रयोग देश के अलग-अलग भाग में किये जाते रहे है | एक ऐसे ही महायज्ञ का कुछ समय पहले मैं प्रत्यक्षदर्शी बना था उसके आधार पर यह आलेख लिख रहा हूं |
कच्छ के नख्तराना तालुके के अंतर्गत आने वाले गांव वेरसलपर में जुलाई 2024 में एक 6 दिवसीय पर्यावरण शुद्धि व वर्षा महायज्ञ अर्थात पर्जन्य यज्ञ का आयोजन किया गया था | इस महायज्ञ के ब्रह्मा अर्थात मुख्य पुरोहित आचार्य (डॉ.) कमलनारायण आर्य थे |
यह आयोजन वेरसलपर जीव कल्याण समिति के सहयोग से किया गया | कच्छ की धरा पर नियमित व पर्याप्त वर्षा हो इसके लिए इस प्रकार के पर्जन्य यज्ञों की श्रृंखला का यह 9 वां महायज्ञ था |
इस महायज्ञ के लिए विशेष रूप से 6 फिट गहरे व 6 फिट व्यास वाले एक वृताकार यज्ञ कुंड का निर्माण किया गया था | इसमें प्रतिदिन लगभग 100 किलो देसी गाय के घी से प्रतिदिन लगभग 1 लाख आहुति दी जाती थी |
पर्जन्य यज्ञ का विज्ञान
जल वृष्टि रूप में पर्जन्य अर्थात बादल, मेघ आदि से प्राप्त होता है अर्थात जल का धारक पर्जन्य ही पुष्ट होकर वर्षा रूप में बरसते हैं | वृष्टि यज्ञ में बड़ी मात्रा में गौ घृत जलाया जाता है | यह घी अग्नि के द्वारा आकाश में पहुंचता है | यह अपने अंदर वायु को घुसने नहीं देता और बहुत ऊंचाई पर्यंत एक स्तूपाकार मार्ग बना देता है | इसके कारण नीचे से सघन वायु विरल होकर उड़ जाती है और घृत के मार्ग में आकाश स्थित जलवाष्प भर जाता है क्योंकि घी में पानी को जमा देने की शक्ति होती है | अतः जलवाष्प संघन हो जाता है और पानी के रूप में बरस जाता है |
क्योंकि वैदिक विज्ञान की दृष्टि विस्तृत होती है अतः इस तरह की वृष्टि यज्ञ से न सिर्फ पर्याप्त वर्षा होती है बल्कि पर्यावरण शुद्धि व जनमानस में आध्यात्मिक ऊर्जा का भी बड़े स्तर पर संचार होता है | वास्तव में यज्ञ से पांच तत्वों की शुद्धि, स्वास्थ्य लाभ, आत्मबल की वृद्धि, सामाजिक समन्वय में वृद्धि व विश्व कल्याण स्थापित होता है | यज्ञ वर्तमान विश्व की समस्याओं का संपूर्ण समाधान है | लेकिन किसी भी यज्ञ में प्रयुक्त घृत, समिधा व सामग्री शुद्ध हो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए |
कोई भी यज्ञ मंत्र, अग्नि और आहुति से संचालित होता है | इसके अलावा समिधा, घृत व सामग्री यह यज्ञ के तीन आधारभूत पदार्थ हैं | मंत्र शक्ति से जो ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है वह तीव्रता से ऊपर उठती है तथा सूर्य के अंतराल से टकराकर वापस आती है | यह वापस आते हुए अपने साथ सूर्य की शक्तियों को आत्मसात किये रहती है | इन वेद मन्त्रों में परमात्मा की शक्ति व सामर्थ्य निहित होता है जो यज्ञ के उद्देश्य को पूरा करने में अत्यंत उपयोगी है |
वृष्टि यज्ञ में ध्वनि विस्तारक यंत्र अर्थात लाउडस्पीकर का मुंह आकाश की ओर रखा जाता है जिससे मंत्र ध्वनि बादलों तक पहुंचे |
मन्त्रों के अलावा अग्नि का भी वृष्टि से गहरा संबंध है | वैदिक साहित्य में अग्नि को वर्षा करने वाला बताया गया है |
यज्ञ की व्यवस्था व सामग्री
यज्ञ में आहुति के लिए वृताकार यज्ञ कुंड के चारों तरफ यजमानों के बैठने की व्यवस्था रहती है | यज्ञ कुंड आकाश की ओर खुला रहता है जिसे वर्षा की स्थिति में ढकने की व्यवस्था होती है | यज्ञ कुंड के खुले रहने से यज्ञ ऊर्जा या यज्ञ का धुआं आकाश तक आसानी से पहुंच जाता है |
यज्ञ में प्रयुक्त लड़कियों को समिधा कहते हैं | वृष्टि यज्ञ में कुछ विशेष वृक्षों की समिधाओं का ही प्रयोग होता है इनमें पीपल, गूलर, बेंत आदि की अनिवार्यता होती है | इसके अलावा कुछ अन्य समिधाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है | सामान्यतः 6 दिवसीय पर्जन्य यज्ञ में लगभग 8 से 9 क्विंटल समिधाओं का उपयोग हो जाता है |
वृष्टि यज्ञ में शुद्ध देसी गौ के घृत का प्रयोग किया जाता है | इस प्रकार प्रतिदिन 100 किलो के हिसाब से लगभग 600 किलो घृत का प्रयोग किया जाता है |
यज्ञ कुंड के मध्य में सोमरस की धारा लगातार टपकाई जाती है | इस सोमरस को बनाने के लिए लगभग 26 औषधीयों का काढ़ा बनाकर उसमें निश्चित मात्रा में शहद, गौघृत, गौ दुग्ध व नारियल मिलते हैं |
वर्षा यज्ञ में उपयोगी सामग्री में वात-कफ नाशक, मूत्रल (मूत्र लाने वाली), स्वेद जनन (पसीना लाने वाली), रक्त वर्धक, विषनाशक, ज्वरनाशक, दुर्गंध नाशक आदि गुणों से युक्त लगभग 84 प्रकार की औषधियों का प्रयोग किया जाता है | इसके अलावा चांदी के सिक्के, हलवा, गन्ना, केला आदि की भी आहुति दी जाती है | केरडा की कच्ची झाड़ी का प्रयोग सहस्त्र धारा आहुति के पहले की जाती है | सहस्त्र धारा आहुति के दौरान आसमान की तरफ उठती अग्नि लपटें एक अद्भुत दृश्य उत्पन्न करती हैं | ये प्रचंड अग्नि की लपटें लोगों में आध्यात्मिक भावना का सहज संचार करती है |
प्रतिदिन यज्ञ के समापन पर ईख, केले के पत्ते व अन्य कच्चे सामग्रियों से अग्नि को ढक दिया जाता है जिससे अंत में वाष्प बन सके |
यज्ञ परिणाम
इस यज्ञ के परिणामस्वरुप पर्यावरण में अद्भुत शुध्धि का अनुभव सबने किया तथा यज्ञ के अंतिम दिवस यज्ञ स्थल पर व आसपास के कई क्षेत्रों में वृष्टि होने लगी |
वृष्टि यज्ञ का परिणाम कई बार अंतरिक्ष की जलीय स्थिति व तात्कालिक मौसम की स्थिति के अनुसार यज्ञ के समय, यज्ञ पूर्ण होने पर व यज्ञ पूर्ण होने के कई दिनों बाद भी देखने को मिलता है | वास्तव में विधिपूर्वक किया गया कोई भी यज्ञ कभी विफल नहीं जाता | यज्ञ का फल अनेक प्रकार से शीघ्र या विलंब शुभ रूप में ही प्राप्त होता है |