किसी विशाल वन में एक बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था | वह वृक्ष विभिन्न लताओं से ढका हुआ और भिन्न-भिन्न प्रकार से सुशोभित था | उस विशाल बरगद वृक्ष की जड़ में 100 द्वारों वाला बिल बनाकर पालित नाम का एक परम बुद्धिमान चूहा निवास करता था |
इस वट वृक्ष की शाखा पर लोमश नाम का एक बिलाव भी रहता था | दुष्ट लोमश पक्षी – समूहों का भक्षण किया करता था | इस वन में एक चांडाल भी अपना घर बना कर रहता था | प्रतिदिन सायंकाल सूर्यास्त हो जाने पर वहां जाकर जाल फैला देता और प्रातः काल वहां आ पहुंचता | रात्रि में उस जाल में जो पशु फस जाते वह उन्हें पकड़ कर अपने साथ ले जाता |
एक दिन बरगद के पेड़ पर रहने वाला लोमश बिलाव भी अपनी असावधानी के कारण उस चांडाल के जाल में फंस गया | लोमश की इस अवस्था को देखकर चूहा पालित बहुत खुश हो गया | अब वह निर्भय होकर अपने बिल से निकाल कर इधर उधर कूदने लगा क्योंकि अभी तक उसे लोमश से अपने प्राणों का भय रहता था | थोड़ी देर में उसकी दृष्टि जाल पर बिखरे मांस पर गई| फिर तो वह जाल पर चढ़कर मांस खाने लगा | एक ओर तो वह मांस खा रहा था दूसरी और बिलाव को देख-देख कर उस पर हंस भी रहा था | उसे बड़ा मजा आ रहा था | लेकिन इतने में उसकी दृष्टि दूसरी ओर घूमी तो देखता है उसका दूसरा जन्मजात शत्रु नेवला आया हुआ है इस नेवले का नाम हरिण था | उसकी आंखें तांबे के समान दिख रही थी | चूहा उसे देखकर डर गया | नेवले से बचने का मार्ग खोजते हुए चूहे ने जब दूसरी ओर दृष्टि दौराई तो उसने एक नई मुसीबत को देखा | बरगद की शाखा पर उसका एक दूसरा शत्रु चंद्रक नाम का उल्लू बैठा था | इस स्थिति में फंसा चूहा सोचने लगा कि यदि मैं पृथ्वी पर उतरकर भगता हूं तो नेवला मुझे पकड़ कर खा जाएगा | यदि यहीं ठहरता हूं तो उल्लू मुझे मार डालेगा और यदि जाल को काटकर उसमें घुसता हूं तो बिलाव का शिकार बन जाऊंगा | इतने पर भी चूहे ने स्वयं को मजबूत करते हुए सोचा कि मेरे जैसे बुद्धिमान को घबराना नहीं चाहिए, मुझे युक्ति से काम निकालना चाहिए, परस्पर सहयोग का आदान-प्रदान करके मैं अपने जीवन की रक्षा के लिए प्रयास करूंगा | बुद्धिमान, विद्वान व नीतिशास्त्र का ज्ञाता भयंकर विपत्ति में भी उसमें डूब नहीं जाता बल्कि उससे छूटने की चेष्टा करता है |
चूहे ने सोचा की प्राण संकट में ही है तो क्यों ना आज मैं अपने शत्रु इस बिलाव का ही सहारा ले लूं | आचार्यों का कथन है कि संकट की स्थिति में जीवन की रक्षा चाहने वाले पुरुष को अपने निकटवर्ती शत्रु से संधि कर लेनी चाहिए | एक मुर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान शत्रु उत्तम होता है अतः आज मेरा यह जीवन मेरे शत्रु बिलाव के ही अधीन है |
यह सब सोच विचार के चूहे ने बिलाव से मैत्री प्रस्ताव करते हुए तरह-तरह के बुद्धिमत्तापूर्ण मधुर वचन बोले –
“भाई बिलाव | तुम मेरी सहायता के बिना अपना यह बंधन नहीं काट सकते | यदि तुम मुझे ना मारो तो मैं तुम्हारे सारे बंधन काट डालूंगा |
सज्जनों में सात पग साथ साथ चलने से ही मित्रता हो जाती है | हम दोनों तो यहां सदा से रहते आए हैं, अत: तुम मेरे मित्र हो |
कोई मनुष्य जब किसी लकड़ी के सहारे किसी विशाल नदी को पार करता है, तब वह उसे लकड़ी को भी किनारे लगा देता है अर्थात सहयोग में बड़ा बल है | इसी प्रकार हम दोनों भी आपस में सहयोग करें | हम दोनों एक दूसरे को विपत्ति से बचा सकते हैं |”
पालित चूहे की युक्तियुक्त बातों को सुनकर लोमश बिलाव बहुत खुश हो गया और कहने लगा भाई तुम्हारी बुद्धिमता पूर्ण बातों को सुनकर मैं तुम्हारा भक्त और शिष्य हो गया हूं | मैं तुम्हारी शरण में आ गया हूं | बिना विलंब किये आपत्ति में पड़े हम दोनों को संधि कर लेनी चाहिए | बिलाव के ऐसा कहने पर चूहे ने अपनी योजना बताते हुए कहा – ” मुझे इस नेवले वा उल्लू से भय लग रहा है अतः यदि तुम मुझे न मारने का वचन दो तो मैं तुम्हारे पीछे इस जाल में प्रवेश कर जाऊंगा और फिर तुम्हारे भी बंधन काट दूंगा |”
चूहे की बात सुन बिलाल ने तुरंत ही उसे न मारने का आश्वासन देते हुए प्रसन्नता पूर्वक कहा – “मित्र ! मैं तुम्हारा सेवक हूं | मेरे द्वारा तुम्हारा जो – जो कार्य किया जा सकता हो उसका मुझे निर्भय हो आज्ञा दो, मैं तुम्हारा सब कार्य करूंगा हम दोनों में सहयोग व मित्रता की संधि है |”
अब बिलाव से आश्वासन पाकर चूहा जाल में घुसकर बिलाव की छाती पर भागकर जा बैठा | इधर चूहे को जाल में घुस जाने व बिलाव के अंगों में जा छिपाने से नेवला वा उल्लू दोनों निराश हो अपने-अपने ठिकाने पर लौट गए |
अब चूहा अपने दो शत्रु के भय से मुक्त हो गया लेकिन अपने सबसे प्रबल शत्रु बिलाव की छाती पर ही बैठा था | परिस्थितियों को भली-भांति समझने वाला बुद्धिमान चूहा धीरे-धीरे उस जाल को काटने लगा | वास्तव में वह चांडाल के आने की प्रतीक्षा में था |
इधर जब बिलाव ने देखा कि चूहा जाल तो काट रहा है लेकिन इस कार्य में धीमा है, शीघ्रता नहीं कर रहा तो उसने थोड़ा क्रोधित होते हुए बोला – “पालित, तुम जाल काटने में इतना विलंब क्यों कर रहे हो ? क्या तुम्हारा कार्य सिद्ध हो गया है, इसलिए ऐसा कर रहे हो? देखो चांडाल अभी आ ही रहा होगा | उससे पहले तुम मेरे बंधनों को काट डालो |”
इस पर चूहा बोला – “लोमश जी तुम्हें इतना उतावला नहीं होना चाहिए | मैं समय को भली भांति पहचानता हूं उचित अवसर आते ही मैं अपना काम कर दूंगा | बिना अवसर के किया हुआ कार्य करने वाले के लिए लाभदायक नहीं होता और वही कार्य यदि उपयुक्त समय पर किया जाए तो महान फलदायक हो जाता है |
यदि तुम असमय ही छूट गए तो हो सकता है कि तुम मुझे ही अपना आज का भोजन बना लो, अतः जब मैं देखूंगा की चांडाल हथियार लिए आ रहा है, तब तुम पर भय उपस्थित होने पर मैं शीघ्रता से तुम्हारे बंधन काट डालूंगा | उस समय तुम भी भय से आक्रांत हो भाग खड़े होंगे और वृक्ष की शाखा पर जा बैठोगे और मैं भी भाग कर बिल में घुस जाऊंगा |” चूहे के तर्कों को सुन बिलाव बोला –
“श्रेष्ठ पुरुष मित्रों के कार्य बड़े प्रेम व प्रसन्नता से किया करते हैं | जैसे मैंने तुम्हें संकट से छुड़ाया वैसे तुम्हें भी शीघ्रता से मेरे हित का कार्य करना चाहिए |”
लेकिन चूहा विद्वान व नीति को जानने समझने वाला बुद्धि से संपन्न था | अतः उसने बिलाव से बुद्धिमत्तापूर्वक यह वचन कहे –
“जो किसी डरे हुए प्राणी द्वारा मित्र बनाया गया हो और जो स्वयं भी भयभीत होकर ही उसका मित्र बना हो इन दोनों प्रकार के मित्रों की वैसे ही रक्षा होनी चाहिए जैसे सपेरा सर्प के मुख से हाथ बचा कर ही उसे खिलाता है |
जो अपने से बलवान व्यक्ति से संधि कर अपनी रक्षा का ध्यान नहीं रखता उसकी मित्रता अपथ्य भोजन के समान हितकारी नहीं होती |
ना तो कोई किसी का मित्र है और ना कोई किसी का शत्रु | स्वार्थ को लेकर ही मित्र व शत्रु एक दूसरे से बंधे हैं |
काम पूरा हो जाने पर कोई भी उसके करने वाले को नहीं देखता उसके हित पर ध्यान नहीं देता, अतः सभी कार्यों को अधूरा ही रखना चाहिए |
अतः जब चांडाल आ पहुंचेगा, उस समय तुम भय से भयभीत हो भागने लगा जाओगे, मुझे ना पकड़ पाओगे उस समय मैं जाल का बचा हुआ एक तंतु काट डालूंगा |”
इस प्रकार संकट में पड़े हुए दोनों के वार्तालाप करते-करते रात्रि व्यतीत हो गई | सुबह होने पर कुत्तों के समूह से घिरा परिघ नामक चांडाल हाथ में हथियार लेकर आता दिखाई दिया | यह देख बिलाव भय से व्याकुल हो गया |
लेकिन इतने में ही चूहे ने बिलाव का बंधन काट दिया | जाल से छूटते ही डरा हुआ लोमश बिलाव उसी वृक्ष की शाखा पर भागकर जा बैठा | पालित चूहा भी बिलाव के भय से मुक्त हो अपने बिल में जा घुसा | इधर चांडाल को अपने जाल में कुछ ना मिला तो वह भी निराश होकर अपने घर को चला गया |
भारी भय से छूट व जीवन पाकर वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए लोमश बिलाव ने प्रेम का दिखावा करते हुए मधुरता से बोला –
“मित्र पालित ! मैंने तुम्हारा और तुमने मेरा जीवन बचाया है | हम दोनों अच्छे मित्र हैं | लेकिन तुम तो बिना मुझसे वार्तालाप किये अपने बिल में चले गए | अभी तो हमारी मित्रता के उपयोग का समय है | तुम्हें मेरे पास आना चाहिए | मेरे विद्वान मित्र ! तुम मेरे मंत्री बन जाओ और पिता की भांति मुझे कर्तव्य का उपदेश दो | मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं कि मेरे तरफ से तुम्हें कभी कोई भय नहीं होगा |”
बिलाव की इन उदारता पूर्ण व शांतिपूर्ण बातें सुनकर चूहे ने मधुरवाणी में कहा –
“लोमश ! नीति कहती है कि अपने मित्रों को जानना चाहिए और शत्रु को भी अच्छी प्रकार समझ लेना चाहिए – इस संसार में मित्र व शत्रु की यह पहचान अत्यंत सूक्ष्म है |
अवसर आने पर कितने ही मित्र शत्रु बन जाते हैं और कितने ही शत्रु मित्र | वास्तव में ना कभी कोई मित्र होता है ना कोई शत्रु | कार्यवश ही लोग एक दूसरे के मित्र व शत्रु हुआ करते हैं |
मैत्री और शत्रुता कोई सदा स्थिर रहने वाली वस्तु नहीं है | स्वार्थ के संबंध से मित्र व शत्रु होते रहते हैं | माता-पिता, पुत्र व अन्य संबंधियों में भी स्वार्थ के कारण ही प्रेम होता है |
अपना प्रिय पुत्र भी यदि पतित हो जाता है तो माता-पिता त्याग देते हैं | वास्तव में सब लोग सदा अपने ही रक्षा करना चाहते हैं | गंभीरता से विचार करो, इस संसार में स्वार्थ ही सार है |
मनुष्य कारण से ही प्रेम-पात्र व कारणवश ही द्वेषभाजन बनता है | कोई किसी का प्रिय नहीं है | यह जीव जगत स्वार्थ का ही साथी है | मैं इस संसार में किसी के भी प्रेम को स्वार्थ रहित नहीं समझता |
कोई दान देने से प्रिय होता है तो कोई मधुर वचन बोलने से और कोई कार्य सिद्धि के लिए मंत्र, होम आदि करने से | हम दोनों की प्रति भी विशेष कारण से उत्पन्न हुई थी, उस कारण के समाप्त हो जाने से अब वह स्थिर नहीं रह सकती |
अब मुझे खा जाने के सिवा दूसरा कौन सा ऐसा कारण रह गया है, जिससे मैं मान लूं कि वास्तव में तुम्हारा मुझ पर प्रेम है ?
तुम जाति से ही मेरे शत्रु हो, विशेष प्रयोजन से मित्र बने थे | वह प्रयोजन सिद्ध कर लेने के पश्चात तुम्हारी प्रकृति पुनः सहज शत्रु भाव की हो गई है | हमने एक दूसरे की मदद की और अपने-अपने प्राणों की रक्षा की | लेकिन अब काम पूरा हो जाने पर हमें परस्पर मिलने की आवश्यकता ही क्या है ?
लोमश ! मैं दुर्बल हूं और तुम बलवान | मैं अन्न हूं और तुम खाने वाले | हम दोनों में बहुत अंतर है | अतः हम दोनों में संधि नहीं हो सकती | मैं जानता हूं कि तुम भूखे हो और यह तुम्हारे भोजन का समय है, अतः तुम मुझसे पुनः मित्रता कर अपने लिए भोजन जुटा रहे हो | अतः मैं तुमसे अब नहीं मिलूँगा |
जो अपना शत्रु हो, दुष्ट हो, विपत्ति में पड़ा हो, भूखा हो, और अपने लिए भोजन खोज रहा हो, उसके समक्ष कोई बुद्धिमान जो उसका भोज्य हो सकता है, वह कैसे जा सकता है ?”
पालित की स्पष्टवादीता से लोमश थोड़ा लज्जित हुआ लेकिन फिर भी चूहे पालित को अपनी बातों में फसाने का प्रयत्न जारी रखते हुए कहा –
“भाई ! मैं तुमसे सत्य की शपथ खाकर कहता हूं – मित्र से द्रोह करना तो अत्यंत घृणित है | तुम धर्म के मर्म को जानते हो, अत्यंत बुद्धिमान हो अतः मैं तुम्हारा भक्त बन गया हूं | मैं तो तुम्हारे लिए अपने बंधु – बांधवों सहित अपने प्राण तक दे सकता हूं | अतः बिना मुझ पर संदेह किए मुझसे मेल-जोल बढ़ाकर मेरे साथ घूमो फिरो |”
इसपर नीतिशास्त्र को अच्छे से समझने वाला चूहा पालित बोला – “सखे ! तुम मेरी कितनी ही स्तुति क्यों ना करो, परंतु अब मैं तुम्हारे साथ मिल नहीं सकता | बुद्धिमान व विद्वान पुरुष बिना किसी विशेष कारण के अपने शत्रु के वश में नहीं जाते | इस संदर्भ में शुक्राचार्य की कही गई दो बातें में तुम्हें सुनाता हूं –
i) जब अपने व शत्रु पर एक जैसा संकट आया हो, तब निर्बल को सबल शत्रु के साथ मेल करके बड़ी सावधानी और युक्ति से अपना काम निकाल लेना चाहिए और काम निकल जाने पर, उस शत्रु पर विश्वास नहीं करना चाहिए |
ii) जो विश्वासपात्र ना हो उस पर विश्वास ना करें और जो विश्वासपात्र हो उन पर भी अधिक विश्वास ना करें | अपने प्रति सदा दूसरों में विश्वास उत्पन्न करें परंतु स्वयं दूसरों का विश्वास ना करें |
जो विश्वास न करके सावधान रहते हैं, वह दुर्बल होने पर भी शत्रुओं द्वारा नहीं मारे जाते, परंतु जो उनपर विश्वास करते हैं वे बलशाली होने पर भी दुर्बल शत्रुओं द्वारा मार डाले जाते हैं |
भाई बिलाव ! तुम जैसों से मुझे सदा अपनी रक्षा करनी चाहिए और तुम भी अपने जन्मजात शत्रु चांडाल से अपनी रक्षा करो |”
चंडाल का नाम सुनते ही बिलाव काफी डर गया और शीघ्रता से दूसरी डाल पर फांद गया | ऐसे भी वह समझ गया था कि चूहे को किसी भी तरह अपनी बातों में फसना संभव नहीं है | इधर नीतिशास्त्र के अर्थ व मर्म को समझने वाला चूहा भी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए दूसरे बिल में चला गया |
इस प्रकार दुर्बल व अकेला होने पर भी पालित चूहे ने अपने बुद्धि बल से अनेक प्रबल शत्रुओं को परास्त कर अपनी रक्षा की |