महाभारत से पूजनी चिड़िया की कथा , शत्रुओं से सदा सावधान रहने संबंधी पूजनी चिड़िया व राजा ब्रह्मदत्त की संवाद रूपी कथा |
महाभारत के शांति पर्व में भीष्म पितामह महाराज युधिष्ठिर को शत्रुओं से सदा सावधान रहने से संबंधी पूजनी चिड़िया की एक कथा सुनाते हैं |
काम्पिल्य नगर में ब्रह्मदत्त नाम के एक राजा का शासन था | उसके अंतःपुर में पूजनी नाम की एक चिड़िया लंबे समय से निवास कर रही थी | एक दिन रनिवास (रानी के निवास) में ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया | उसी दिन रानी के गर्भ से भी एक बालक का जन्म हुआ | पूजनी अपने बच्चे के साथ-साथ राजा के बच्चे को भी समान रूप से स्नेह देती थी | प्रतिदिन सुबह-सुबह जंगल जाकर वहां से दोनों बच्चों के लिए दो फल लाया करती थी | एक फल अपने बच्चों को तथा दूसरा फल राजकुमार को दिया करती थी |
एक दिन धाय उस राजकुमार को गोद में लिए घूम रही थी | जब उसने चिड़िया के बच्चे को देखा तो भाग कर उसे पकड़ लिया व उसके साथ खेलने लगा | लेकिन कुछ देर के बाद बालक राजकुमार उस चिड़िया के बच्चे को एक सूने स्थान पर ले गया व पटक कर मार दिया |
कुछ समय बाद जब पूजनी जंगल से फल लेकर आई तो देखा कि राजकुमार ने उसके बच्चे को मार डाला है और वह क्षत-विक्षत अवस्था में धरती पर पड़ा हुआ है | अपने बच्चे की ऐसी दुर्गति देखकर पूजनी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी और वह दुख से संतप्त हो रोती हुई बोली – ‘ यह राजकुमार कृतघ्न, अत्यंत क्रूर व विश्वासघाती है | यह भविष्य में राजा बनाकर राज्य की जनता के साथ भी ऐसा ही व्यवहार कर सकता है |
एक राजा रक्षक होता है भक्षक नहीं | अतः न्याय होना चाहिए | ऐसा कह कर पूजनी ने अपने दोनों पंजों से राजकुमार की दोनों आंखें फोड़ डाली | इसके बाद वह पास के वृक्ष की एक डाल पर जा बैठी और राजा को संबोधित करते हुए बोली –
हे राजन ! संसार में इच्छापूर्वक जो पाप किया जाता है, उसका फल तत्काल ही कर्ता को मिल जाता है, जिनके पाप का फल मिल गया हो, उनके पूर्व के शुभकर्म फल नष्ट नहीं होते | लेकिन यदि किए हुए पाप का कोई फल कर्ता को ना मिले तो उसका फल उसके बेटे, पोते आदि को भोगना पड़ता है | फिर राजा ब्रह्मदत्त ने भी समझ लिया कि उसके पुत्र की आंखें फोड़ एक तो पूजनी ने अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लिया दूसरा राजपुत्र के क्रूर होने की सजा उसने दी क्योंकि भविष्य के राजा को निर्बलों का रक्षक होना चाहिए, शोषक व भक्षक नहीं | अतः राजा ने क्रोध त्याग पूजनी से कहा –
पूजनी तुमने अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लिया है | सबको अपने साथ होने वाले अन्याय का बदला स्वयं लेने का अधिकार है | अतः मैं तुमसे कुपित नहीं हूं | तू अब यहीं रह, कहीं और ना जा |
इसपर पूजनी बोली – ” राजन! एक बार किसी का अपराध करके पुन: उसी स्थान पर रहना ठीक नहीं | वहां से भाग जाने में ही उसका कल्याण है |
जहां पहले सम्मान मिला हो, वहीं बाद में अपमान होने लगे तो पुन: सम्मान मिलने पर भी एक शक्तिशाली मनुष्य को वह स्थान छोड़ देना चाहिए |
राजन! मैं बहुत समय तक बड़े आदर सम्मान के साथ आपके घर में रही हूं, परंतु अब वैर उत्पन्न हो गया है अतः अब मेरा यहां से शीघ्रता से व सुखपूर्वक चला जाना ही उचित है |”
ब्रह्मदत्त बोला – “पूजनी ! एक साथ रहने से तो घातक प्राणियों में भी परस्पर स्नेह उत्पन्न हो जाता है और वह एक-दूसरे का विश्वास करने लगते हैं | जिनका परस्पर वैर हो गया हो, एक साथ रहने से उनका वह वैर भी मंद पड़ जाता है | जैसे कमल के पत्तों पर जल नहीं ठहरता वैसे ही वैर भी ज्यादा देर तक टिक नहीं सकता |
राजा को उत्तर देती हुई पूजनी ने कहा – ब्रह्मदत्त ! वैर 5 कारणों से हुआ करता है –
1) स्त्री के लिए
2) गृह और भूमि के लिए
3) कठोर वाणी के कारण
4) जातिगत द्वेष के कारण व
5) किसी समय किए अपराध के कारण
अब जिसने वैर बांध लिया हो, ऐसे मित्र तक पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि जैसे लकड़ी में आग छिपी रहती है, वैसे ही उसके हृदय में वैरभाव छिपा रहता है |
राजन! क्रोध की अग्नि ना धन से, न कठोरता दिखाने से, ना मधुर वचनों द्वारा समझाने बुझाने और ना ही शास्त्र ज्ञान से शांत होती है |
जब किसी कुल में वैर बंध जाता है तब वह शांत नहीं होता | उस कुल में उसे स्मरण कराने वाले बने ही रहते हैं, जब तक उस कुल में एक भी पुरुष जीवित रहता है तब तक वह वैर नहीं मिटता |
नरेश्वर! दुष्ट प्रकृति के लोग मन में वैर रखकर ऊपर से शत्रु को मीठे वचनों द्वारा सांत्वना देते रहते हैं परंतु अवसर पाने पर उसे उसी प्रकार पीस डालते हैं जैसे कोई पानी से भरे घड़े को पत्थर पर पटक कर चूर-चूर कर देता है |
राजन! मैने तुम्हारे पुत्र के साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार किया है, अतः अब मैं यहां रहने का साहस नहीं कर सकती | दुराचारिणी स्त्री, आज्ञा ना मानने वाले पुत्र, अन्यायी राजा, विश्वासघाती मित्र व दुष्ट देश को दूर से ही त्याग देना चाहिए |
कुपुत्र पर कभी विश्वास नहीं हो सकता | दुष्टा भार्या पर प्रेम कैसे हो सकता है? अन्यायी राजा के राज्य में कभी शांति नहीं मिल सकती और दुष्ट देश में जीवन निर्वाह नहीं हो सकता |
पत्नी वह है, जो प्रिया वचन बोले | पुत्र वह है, जिससे सुख मिले | मित्र वही श्रेष्ठ है जिस पर विश्वास बना रहे और देश वही उत्तम है जहां जीविका चल सके |
राजा वही श्रेष्ठ है, जिसके राज्य में बलात्कार न हो, किसी प्रकार का भय ना रहे, जो दरिद्र का पालन करना चाहता हो और प्रजा के साथ जिसका पाल्य-पालक संबंध बना रहे |
जो प्रजा की आय का छठा भाग कर रूप में लेकर उसका व्यक्तिगत उपभोग करता है परंतु प्रजा का भली-भांति पालन नहीं करता वह राजाओं में चोर है |
राजन! शक्तिशाली के साथ युद्ध कभी अच्छा नहीं माना जाता | जिसने अपने से बलवान के साथ झगड़ा मोल ले लिया उसका सुख कभी स्थिर नहीं रह सकता |
राजा ब्रह्मदत्त से इस प्रकार के बुद्धिमत्तापूर्ण वचन कह पूजनी चिड़िया वहां से उड़ गई |